ZAKIR KHAN SHAYARI ON LOVE

अपने आप के भी पीछे खड़ा हु मैं
ज़िंदगी कितना धीरे चला आ रहा है
मुझे जगाने जो और भी हसीं होके आते थे
उन खवाबो को सच समझकर सोया मैंने।

Zakir Khan Shayari

हालत की बंजर ज़मी फार कर निकला हु
बेफिकर रहिये मैं सोहरत के धुप में नही जलूँगा

ZAKIR KHAN SHAYARI IN HINDI

क्या वो आग नहीं रही न सोलो से दहकता हु
रंग भी सब जैसा है सब जैसा ही तो महकता हु।

Zakir Khan Shayari

मैं जानना चाहता हु की
क्या रतिफ के साथ चलते हुए शाम को यु ही
बेखयाली में उसके साथ भी हाथ
टकरा जाता है क्या तुम्हारा।

SHAYARI ZAKIR KHAN

इश्क़ किया था
हक से किया था
सिंगल भी रहेंगे तो हक से ।

माना की तुमको इश्क़ का तजुर्बा भी कम नहीं,
हमने भी बाग़ में हैं कई तितलियाँ उड़ाई..

ZAKIR KHAN LOVE SHAYARI

यूँ तोह भूले हैं हम लोग कई,
पहले भी बहुत से,
पर तुम जितना कोई उनमें से,
कभी याद नहीं आया…

क्या आप अपनी छोटी उंगली से उसका हाथ पकड़ते हैं?
ऐसे ही वो मुझे पकड़ती थी। । ! !

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